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जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या | शाही शायरी
justuju-e-nashat-e-mubham kya

ग़ज़ल

जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या

फ़ानी बदायुनी

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जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या
दिल मयस्सर है लज़्ज़त-ए-ग़म क्या

मस्ती-ए-होश के फ़साने हैं
जश्न-ए-परवेज़ ओ इशरत-ए-जम क्या

एक आलम को देखता हूँ मैं
ये तिरा ध्यान है मुजस्सम क्या

इज़्न हंगामा-ए-निगाह न दे
क्या हमारी बिसात और हम क्या

नंग-ए-रहमत है एहतियाज-ए-दुआ
इंतिज़ार-ए-गदा-ए-मुबरम क्या

मेरी फ़ितरत है गोश बर आवाज़
सुन रहा हूँ नवा-ए-मेहरम क्या

मिट गया नाम-ए-आशिक़ी अब और
चाहता है वो हुस्न-ए-बरहम क्या

काश पूछो तो कुछ बताएँ हम
हासिल-ए-शिकवा हाए बाहम क्या

दिल कमाल-ए-हयात है 'फ़ानी'
दिल के मारे हुओं का मातम क्या