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जुनूँ ता'लीम कुछ फ़रमा रहा है | शाही शायरी
junun talim kuchh farma raha hai

ग़ज़ल

जुनूँ ता'लीम कुछ फ़रमा रहा है

निहाल सेवहारवी

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जुनूँ ता'लीम कुछ फ़रमा रहा है
ख़िरद का साथ छूटा जा रहा है

बढ़ी जाती है शम-ए-बज़्म की लौ
कोई परवाना शायद आ रहा है

फ़ना का पेश-रौ इस को समझिए
जो लम्हा ज़िंदगी का जा रहा है

इलाही शरम रखना राज़-ए-दिल की
किसी का नाम लब पर आ रहा है

तिरी रौशन-जबीं का है वो आलम
चराग़-ए-माह भी शर्मा रहा है

निगह ने शक्ल तक देखी नहीं है
पस-ए-पर्दा कोई तड़पा रहा है

'निहाल' आँखें उठा बहर-नज़ारा
कोई सू-ए-गुलिस्ताँ आ रहा है