जुनून सर से उतर गया है
वजूद लेकिन बिखर गया है
बहुत ख़सारा है आशिक़ी में
तमाम इल्म-ओ-हुनर गया है
मैं और ही शख़्स हूँ कोई अब
जो शख़्स पहले था मर गया है
बहुत कड़ा था वो वक़्त मुझ पर
वो वक़्त लेकिन गुज़र गया है
'सिराज' इक ख़ुश-मिज़ाज चेहरा
मुझे उदासी से भर गया है
ग़ज़ल
जुनून सर से उतर गया है
सिराज फ़ैसल ख़ान