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जुनूँ ने ज़हर का पियाला पिया आहिस्ता आहिस्ता | शाही शायरी
junun ne zahar ka piyala piya aahista aahista

ग़ज़ल

जुनूँ ने ज़हर का पियाला पिया आहिस्ता आहिस्ता

तलअत इशारत

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जुनूँ ने ज़हर का पियाला पिया आहिस्ता आहिस्ता
ये शो'ला राख में ढलने लगा आहिस्ता आहिस्ता

बहुत नाज़ुक हैं एहसासात हम अरमाँ-परस्तों के
न हम को ठेस लग जाए सबा आहिस्ता आहिस्ता

बजा साज़-ए-वफ़ा लेकिन ज़रा धीमे बजा मुतरिब
बपा है हश्र सा दिल में सदा आहिस्ता आहिस्ता

ख़ुशी का एक एक लम्हा ख़िराज-ए-ज़ीस्त ले लेगा
ये दिल के टूटने का सिलसिला आहिस्ता आहिस्ता

ये कैसा मोड़ है बेहिस ज़माना-साज़ या क़ातिल
सुलगती है तमन्ना की चिता आहिस्ता आहिस्ता