जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं 
जो ग़म है दामन-ए-सहरा में वो सदा हूँ मैं 
बदल गया है ज़माना बदल गया हूँ मैं 
अब अपनी सम्त भी हैरत से देखता हूँ मैं 
हयात एक सज़ा है भगत रहा हूँ मैं 
दर-ए-क़ुबूल से लौटी हुई दुआ हूँ मैं 
जिसे ख़ुद आप ही अपने पे प्यार आ जाए 
जफ़ा के दौर में वो लग़्ज़िश-ए-वफ़ा हूँ मैं 
जमाल-ए-यार की रानाइयाँ मआज़-अल्लाह 
निगाह बन के नज़ारों में खो गया हूँ मैं 
बस एक जुम्बिश-ए-लब तक वजूद है जिस का 
ज़बान-ए-शौक़ पे वो हर्फ़-ए-मुद्दआ' हूँ मैं 
अगर है जुर्म मोहब्बत तो फिर तकल्लुफ़ क्या 
मदार-ए-जुर्म हूँ तक़्सीर हूँ ख़ता हूँ मैं 
रफ़ाक़तों के ये फ़ानूस ता-ब-कै 'एजाज़' 
हवा की ज़द पे लरज़ता हुआ दिया हूँ मैं
        ग़ज़ल
जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं
ग़नी एजाज़

