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जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं | शाही शायरी
junun KHud-numa KHud-nigar bhi nahin

ग़ज़ल

जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं
ख़िरद की तरह कम-नज़र भी नहीं

कोई राहज़न का ख़तर भी नहीं
कि दामन में गर्द-ए-सफ़र भी नहीं

यहाँ होश-ओ-ईमाँ सभी लुट गए
मज़ा ये है उन की ख़बर भी नहीं

ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं

नज़र मो'तबर है ख़बर मो'तबर
मगर इस क़दर मो'तबर भी नहीं

तिरी अंजुमन मरकज़-ए-आरज़ू
तिरी अंजुमन में गुज़र भी नहीं

कहाँ जाएँ 'ताबाँ' गुनहगार-ए-शौक़
सज़ा भी नहीं दरगुज़र भी नहीं