जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
सुकूँ आज बार-ए-गिराँ हो रहा है
चमकने लगे मेरी नज़रों में ज़र्रे
सितारों का चेहरा धुआँ हो रहा है
गुनाहों से बोझल जबीं की बदौलत
तिरा आस्ताँ आस्ताँ हो रहा है
उधर आसमाँ पर चमकती है बिजली
मुकम्मल इधर आशियाँ हो रहा है
न गिर्दाब ओ तूफ़ाँ न वादे मुख़ालिफ़
मिरा हौसला राएगाँ हो रहा है
तिरा दर्द अब मैं समझने लगा हूँ
मिरा दर्द अब बे-ज़बाँ हो रहा है
ये क्या कम है 'हैरत' मेरी कामयाबी
कि अब तक मिरा इम्तिहाँ हो रहा है
ग़ज़ल
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
हैरत गोंडवी