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जुनूँ गर बढ़ गया रुस्वाइयाँ बर्बाद कर देंगी | शाही शायरी
junun gar baDh gaya ruswaiyan barbaad kar dengi

ग़ज़ल

जुनूँ गर बढ़ गया रुस्वाइयाँ बर्बाद कर देंगी

मोनी गोपाल तपिश

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जुनूँ गर बढ़ गया रुस्वाइयाँ बर्बाद कर देंगी
न यूँ पीछे चलो परछाइयाँ बर्बाद कर देंगी

तुम्हें ज़िद है अकेले ही चलोगे सोच कर देखो
ये कुछ आसाँ नहीं तन्हाइयाँ बर्बाद कर देंगी

पुराने ज़ख़्म ऐसे खोल कर रखने से क्या हासिल
ये अपने पर सितम-आराईयाँ बर्बाद कर देंगी

ख़ुशी में क्या है जो ग़म में नहीं क्या बात कह डाली
तुम्हें ये इल्म की गहराइयाँ बर्बाद कर देंगी

ग़ज़ल सच्ची कहो अच्छी कहो जो दिल को छू जाए
'तपिश' ये क़ाफ़िया-पैमाइयाँ बर्बाद कर देंगी