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जुनून-ए-बे-ख़ुदी के साज़-ओ-सामाँ देखने वाले | शाही शायरी
junun-e-be-KHudi ke saz-o-saman dekhne wale

ग़ज़ल

जुनून-ए-बे-ख़ुदी के साज़-ओ-सामाँ देखने वाले

नख़्शब जार्चवि

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जुनून-ए-बे-ख़ुदी के साज़-ओ-सामाँ देखने वाले
बड़ी हैरत में हैं मेरा गरेबाँ देखने वाले

तुम्हारी ज़ुल्फ़ की उलझन में फँस कर नींद खो बैठे
कभी सोते नहीं ख़्वाब-ए-परेशाँ देखने वाले

अभी भड़केगा सोज़-ए-ग़म अभी ये ज़ख़्म कूदेंगे
ज़रा ठहरें मिरे दिल का चराग़ाँ देखने वाले

मिरी ठहरी हुई दुनिया में हलचल सी मचा डाली
दबे-पाँव चलें गोर-ए-ग़रीबाँ देखने वाले

कहीं सोती हुई दुनिया न पाएमाल हो जाए
ज़रा आहिस्ता ऐ गोर-ए-ग़रीबाँ देखने वाले

उठाएँगे न ऐ 'नख़शब' कभी नज़रें सू-ए-जन्नत
तसव्वुर में बहार-ए-कू-ए-जानाँ देखने वाले