EN اردو
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है | शाही शायरी
jumbish-e-dil nahin beja tu kidhar bhula hai

ग़ज़ल

जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

;

जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
कोई लड़का इसे गहवारा समझ झूला है

ख़ून तू ने जो बहाया है सियह-बख़्तों का
तेरे कूचे में अजब शाम ओ शफ़क़ फूला है

ख़ूब रिंदों ने उड़ाए हैं मज़े दुनिया के
हीज़ को बक्र है मर्दों की वो मदख़ूला है

बेहतर है इश्क़-ए-मजाज़ी तुझे बेकारी से
जब तलक इश्क़-ए-हक़ीक़ी हो ये मशग़ूला है

पा-ए-हिम्मत तो मिरा लंग नहीं है 'हातिम'
गो मिरे काम के तईं दस्त-ए-फ़लक लूला है