जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
कोई लड़का इसे गहवारा समझ झूला है
ख़ून तू ने जो बहाया है सियह-बख़्तों का
तेरे कूचे में अजब शाम ओ शफ़क़ फूला है
ख़ूब रिंदों ने उड़ाए हैं मज़े दुनिया के
हीज़ को बक्र है मर्दों की वो मदख़ूला है
बेहतर है इश्क़-ए-मजाज़ी तुझे बेकारी से
जब तलक इश्क़-ए-हक़ीक़ी हो ये मशग़ूला है
पा-ए-हिम्मत तो मिरा लंग नहीं है 'हातिम'
गो मिरे काम के तईं दस्त-ए-फ़लक लूला है
ग़ज़ल
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम