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जुदाई मुझ को मारे डालती है | शाही शायरी
judai mujhko mare Dalti hai

ग़ज़ल

जुदाई मुझ को मारे डालती है

मुज़्तर ख़ैराबादी

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जुदाई मुझ को मारे डालती है
दुहाई मुझ को मारे डालती है

तुम्हारे इश्क़ में दुनिया है दुश्मन
ख़ुदाई मुझ को मारे डालती है

हसीनों की गली है और मैं हूँ
गदाई मुझ को मारे डालती है

तिरी जल्लाद आँखों की सितमगर
सफ़ाई मुझ को मारे डालती है

असीरी में मज़ा था फ़स्ल-ए-गुल का
रिहाई मुझ को मारे डालती है

ख़फ़ा हैं वो दुआओं के असर पर
रसाई मुझ को मारे डालती है

किए देता है क़ातिल ज़ब्ह 'मुज़्तर'
कलाई मुझ को मारे डालती है