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जुदाई भी क़राबत की तरह थी | शाही शायरी
judai bhi qarabat ki tarah thi

ग़ज़ल

जुदाई भी क़राबत की तरह थी

हसन निज़ामी

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जुदाई भी क़राबत की तरह थी
मगर साअ'त नहूसत की तरह थी

लिपट के सो गया मैं ज़िंदगी से
ग़ज़ब-नाकी इनायत की तरह थी

वो फ़ातेह था मगर जज़्बे से आरी
हमारी हार नुसरत की तरह थी

हिरन की आँख में दहशत थी ज़िंदा
मगर ये चश्म हैरत की तरह थी

गुज़ारी थी जो साअ'त साथ तेरे
नज़र में वो अमानत की तरह थी

यक़ीं करना गुमाँ के दाएरे में
तबीअ'त उस की औरत की तरह थी

अभी जो ख़ाक की पैवंद सी है
फ़लक-बोस इक इमारत की तरह थी

दुआ माँ की मुहाफ़िज़ थी नहीं तो
सऊबत भी क़यामत की तरह थी