EN اردو
जोश पर अपनी मस्तियाँ आईं | शाही शायरी
josh par apni mastiyan aain

ग़ज़ल

जोश पर अपनी मस्तियाँ आईं

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

;

जोश पर अपनी मस्तियाँ आईं
याद किस की ये शोख़ियाँ आईं

बातों बातों में ले लिया दिल को
तुम्हें क्यूँ-कर ये फूर्तियाँ आईं

कहीं उन को न याद आया हूँ
आज क्यूँ मुझ को हिचकियाँ आईं

दोनों आलम हुए तह-ओ-बाला
उन को क्यूँ ख़ुश-ख़िरामियाँ आईं

रुक रहा दम जो आ के आँखों में
याद किस बुत की अँखड़ियाँ आईं

बाल खोले नहा रहे थे वो
क्या ही घिर घिर के बदलियाँ आईं

तुम जो सोए तो तलवे सहलाने
मेरी आँखों की पुतलियाँ आईं

फिर लगाते हो मेहंदी हाथों में
याद फिर रंग-रेलियाँ आईं

जोश-ए-वहशत के दिन फिर आ पहुँचे
मुज़्दा ऐ दिल कि बेड़ियाँ आईं

पड़ गया हाथ जब गरेबाँ पर
हाथ दो-चार धज्जियाँ आईं

नख़्ल-ए-उम्मीद बारवर न हुआ
फूल आए न पत्तियाँ आईं

मैं ने फ़ुर्क़त में आहें कीं दो-चार
लोग समझे कि आँधियाँ आईं

कल से दिल को जो कल नहीं पड़ती
याद किस की कलाइयाँ आईं

मैं ने लिक्खे यहाँ से मतलब-ए-दिल
वाँ से लिख लिख के गालियाँ आईं

रुख़ पे बोसों के बन गए हैं निशाँ
ग़ाज़ा मलिए कि झाइयाँ आईं

हसब-ए-व'अदा जो कल न आए तुम
दिल में लाखों बुराइयाँ आईं

आया गुलशन में जब वो सर्व-ए-सही
गिर्द फिरने को क़ुमरियाँ आईं

अपने जीने से हो गई नफ़रत
याद किस की रुखाइयाँ आईं

जी न लगना था हसरतों के बग़ैर
ख़ुश हुआ दिल सहेलियाँ आईं

दिल तड़पने लगा जो सीने में
याद किस बुत की शोख़ियाँ आईं

अश्क-ए-हसरत निकल पड़े 'अंजुम'
उट्ठो उट्ठो कि बूंदियाँ आईं