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जोश पर आया नहीं है रक़्स-ए-मस्ताना अभी | शाही शायरी
josh par aaya nahin hai raqs-e-mastana abhi

ग़ज़ल

जोश पर आया नहीं है रक़्स-ए-मस्ताना अभी

रईसुद्दीन फ़रीदी

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जोश पर आया नहीं है रक़्स-ए-मस्ताना अभी
रहने दो गर्दिश में थोड़ी देर पैमाना अभी

जाम ख़ाली हो किसी का कोई ख़ुम के ख़ुम चढ़ाए
यार समझे ही नहीं आदाब-ए-मय-ख़ाना अभी

इक ज़रा पीर-ए-मुग़ाँ दे दे हमें भी इख़्तियार
ला के जोबन पर दिखा सकते हैं मय-ख़ाना अभी

इश्क़ की फ़ितरत न बदली है न बदलेगी कभी
शम्अ रौशन कीजिए आता है परवाना अभी

दे दिया दिल हम ने पूरा हो गया यूँ एक बाब
मान जाएँ आप तो पूरा है अफ़्साना अभी

सुन रहे हैं आ रही है हर तरफ़ ताज़ा बहार
अपना घर क्यूँ लग रहा है मुझ को वीराना अभी

ऐ 'फ़रीदी' वो सताते हैं सता लेने भी दो
कम-सिनी है और हैं अंदाज़-ए-तिफ़्लाना अभी