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जो ज़ौक़-ए-नज़र हो तो तुर्की में आ कर | शाही शायरी
jo zauq-e-nazar ho to turki mein aa kar

ग़ज़ल

जो ज़ौक़-ए-नज़र हो तो तुर्की में आ कर

अनीसा बेगम

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जो ज़ौक़-ए-नज़र हो तो तुर्की में आ कर
हयात-ए-अज़ीमा के आसार देखो

लगा कर नई चश्मक-ज़नी हम-सरों से
लक़ब जिस का था मर्द-ए-बीमार देखो

मिटाने पे जिस के तुला था ज़माना
उभरता है वो तुर्क-ए-तातार देखो

ब-इज़हार-ए-जुरअत ये ज़ोर-ए-सदाक़त
हुए किस तरह ज़ेर अग़्यार देखो

ब-सद शान जाता है अंताक्या को
अतातुर्क का ख़ाल-ए-जर्रार देखो

जो सोए हुए थे जो खोए हुए थे
किया उन को यक-लख़्त बेदार देखो

सँभलती हैं गिर कर चमकती हैं मिट कर
ये हैं ज़िंदा क़ौमों के अतवार देखो