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जो ज़रूरी है कार कर पहले | शाही शायरी
jo zaruri hai kar kar pahle

ग़ज़ल

जो ज़रूरी है कार कर पहले

अशोक साहनी

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जो ज़रूरी है कार कर पहले
शुक्र-ए-पर्वरदिगार कर पहले

ग़म का हर दम बयाँ नहीं अच्छा
अपनी ख़ुशियाँ शुमार कर पहले

इश्क़ इक आग का समुंदर है
ये समुंदर तू पार कर पहले

मत उठा उँगलियाँ रक़ीबों पर
ऐब अपने शुमार कर पहले

रौशनी की अगर तमन्ना है
ज़ुल्मत-ए-शब पे वार कर पहले

मात भी इस में जीत जैसी है
इश्क़ में देख, हार कर पहले

सर-बुलंदी है ख़ाकसारी में
इंकिसार इख़्तियार कर पहले

देने वाला बड़ाई भी देगा
उस के बंदों से प्यार कर पहले