जो ये जिस्म सर-ता-क़दम देखते हैं
''तुम्हें तुम को हम ऐ सनम देखते हैं
ये सब आप ही की है गुफ़्त-ओ-शुनीद
जो गोश-ओ-ज़बान-ओ-क़लम देखते हैं
और आपी का है सब ये जल्वा मियाँ
जो पेश-ए-नज़र दम-ब-दम देखते हैं
जो हैं महव-ए-दीदार हम इस क़दर
ये आपी का लुत्फ़-ओ-करम देखते हैं
पिया जब से जाम-ए-शराब-ए-तहूरा
तभी से तो दम हैं अदम देखते हैं
तन-ओ-जान-ओ-दिल जुमला-हरकात में
शह-ए-क़ुल-हो-अल्लाह को हम देखते हैं
तुम्हें हो 'सफ़ी' शाह-ए-मर्दां की दीद
न हम बेश देखें न कम देखते हैं

ग़ज़ल
जो ये जिस्म सर-ता-क़दम देखते हैं
मरदान सफ़ी