EN اردو
जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है | शाही शायरी
jo yahan hazir hai wo misl-e-guman maujud hai

ग़ज़ल

जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है

अज़्म बहज़ाद

;

जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है
और जो ग़ाएब है उस की दास्ताँ मौजूद है

ऐ ग़ुबार-ए-ख़्वाहिश-ए-यक-उम्र अपनी राह ले
इस गली में तुझ से पहले इक जहाँ मौजूद है

अब किसी अम्बोह-ए-गुम-गश्ता की जानिब हो सफ़र
और कोई चुपके से कह दे तू कहाँ मौजूद है

शायद आ पहुँचा है अहद-ए-इंतिज़ार-ए-गुफ़्तुगू
चार जानिब ख़िल्क़त-ए-लब-बस्तगाँ मौजूद है

रात फिर आँखों से बह निकली तमन्ना-ए-विसाल
ऐसा लगता था कि तू भी दरमियाँ मौजूद है

पहले थी इक तिश्नगी महरूमियों से हम-कनार
अब रगों में नश्शा-ए-उम्र-ए-रवाँ मौजूद है

अज़्म ख़ुद को कारवान-ए-नफ़'अ में शामिल न कर
तेरे शानों पर अभी बार-ए-ज़ियाँ मौजूद है