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जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया | शाही शायरी
jo tere dar pe meri jaan aaya

ग़ज़ल

जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया

रज़ा अज़ीमाबादी

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जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया
मर गया कहता मैं कहाँ आया

देखें अब किस का पर्दा उट्ठेगा
हर्फ़-ए-शिकवा सर-ए-ज़बाँ आया

मत उठा इस को सौ जिहत से हाए
दर पे तेरे ये ना-तवाँ आया

तेरे हाथों से बे-क़रारी-ए-दिल
जी हमारा भी अब ब-जाँ आया

तू तो इक ही तरफ़ से याँ से गया
ग़म हज़ारों तरफ़ से याँ आया

मर ही जाना भला है मीर-'रज़ा'
यार अब बहर-ए-इम्तिहाँ आया