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जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल | शाही शायरी
jo the hath mehndi lagane ke qabil

ग़ज़ल

जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल

रियाज़ ख़ैराबादी

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जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल
हुए आज ख़ंजर उठाने के क़ाबिल

अनादिल भी कलियाँ भी गुल भी सबा भी
ये सोहबत है हँसने-हँसाने के क़ाबिल

हिना बन के मैं चूम लूँ दस्त-ए-नाज़ुक
तिरे हाथ हैं रंग लाने के क़ाबिल

जवानी का अब रंग कुछ आ चला है
वो अब हो चले हैं सताने के क़ाबिल

मुझे देख कर दुख़्त-ए-रज़ तन रही है
ये खिंच कर हुई है उड़ाने के क़ाबिल

क़यामत में देखेंगे क्यूँकर उन्हें हम
नहीं शर्म से आँख उठाने के क़ाबिल

बनाएँ न अब उस को अब शम-ए-महफ़िल
जला दिल नहीं है जलाने के क़ाबिल

चमन में उड़ा उन को ऐ बाद-ए-सरसर
मिरे टूटे पर हैं उड़ाने के क़ाबिल

बने शो'ले बिजली के क़िस्मत से मेरी
जो तिनके थे कुछ आशियाने के क़ाबिल

बुढ़ापे में साबित हुए दुज़्द-ए-मय हम
न आने के क़ाबिल न जाने के क़ाबिल

ये कहती है हज़रत की रीश-ए-हिनाई
'रियाज़' अब भी हैं रंग लाने के क़ाबिल