जो तेरी यादों से इस दिल का आफ़्ताब मिले
तो मेरी आँखों को दरियाओं का ख़िताब मिले
मिरे मकान-ए-तमन्ना की सीढ़ियों पे कभी
तिरा शबाब मुझे सूरत-ए-गुलाब मिले
किरन की नोकें चुभीं तन में तब हुआ एहसास
कि ख़ंजरों की तरह मुझ से आफ़्ताब मिले
तुम्हारी आँखों के इन नीम-वा दरीचों में
अज़ाब-ए-दीद की सूरत शिकस्ता ख़्वाब मिले
गुनाह एक ही दोनों का है तो फिर ये क्यूँ
उसे सवाब मिले और मुझे अज़ाब मिले
मिरा सलाम ग़रीब-उल-वतन से कह देना
कभी जो दश्त में नेज़ों पे आफ़्ताब मिले
ग़ज़ल
जो तेरी यादों से इस दिल का आफ़्ताब मिले
शारिब मौरान्वी