जो तंग आ कर किसी दिन दिल पे हम कुछ ठान लेते हैं
सितम देखो कि वो भी छूटते पहचान लेते हैं
ब-क़द्र-ए-हौसला सहरा-ए-वहशत छान लेते हैं
मुसाफ़िर हैं सफ़र के वास्ते सामान लेते हैं
ख़ुदा चाहे तो अब के क़त्ल-गह में मुश्किल आसाँ हो
तिरे बीमार-ए-नाहक़ मौत का एहसान लेते हैं
कहीं मरक़द पे जाते हैं कहीं घर तक नहीं जाते
किसी को जान देते हैं किसी की जान लेते हैं
कुदूरत ताकि रह जाए सब अपने दामन-ए-तर में
शराब-ए-शौक़ हम पीने के पहले छान लेते हैं
हमारी शाइ'री ज़िंदा हुई ऐ 'शाद' मरने पर
कि शाएक़ नक़्द-ए-जाँ दे दे के अब दीवान लेते हैं
ग़ज़ल
जो तंग आ कर किसी दिन दिल पे हम कुछ ठान लेते हैं
शाद अज़ीमाबादी