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जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा | शाही शायरी
jo tamasha nazar aaya use dekha samjha

ग़ज़ल

जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा

बेख़ुद देहलवी

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जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा
जब समझ आ गई दुनिया को तमाशा समझा

उस की एजाज़-नुमाई का तमाशाई हूँ
कहीं जुगनू भी जो चमका यद-ए-बैज़ा समझा

मैं ये समझा हूँ कि समझे न मिरी बात को आप
सर हिला कर जो कहा आप ने अच्छा समझा

असर-ए-हुस्न कहूँ या कशिश-ए-इश्क़ कहूँ
मैं तमाशाई था वो मुझ को तमाशा समझा

क्या कहूँ मेरे समाने को समझ है दरकार
ख़ाक समझा जो मुझे ख़ाक का पुतला समझा

एक वो हैं जिन्हें दुनिया की बहारें हैं नसीब
एक मैं हूँ क़फ़स-ए-तंग को दुनिया समझा

मेरा हर शेर है इक राज़-ए-हक़ीक़त 'बेख़ुद'
मैं हूँ उर्दू का 'नज़ीरी' मुझे तू क्या समझा