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जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है | शाही शायरी
jo shaKHs bhi mila hai wo ek zinda lash hai

ग़ज़ल

जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है

अफ़ज़ल मिनहास

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जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है
इंसाँ की दास्तान बड़ी दिल-ख़राश है

दामन दरीदा क़ल्ब-ओ-नज़र ज़ख़्म ज़ख़्म हैं
अब शहर-ए-आरज़ू में यही बूद-ओ-बाश है

बस अब तो रह गई है दिखावे की ज़िंदगी
साँसों के तार तार में एक इर्तिआ'श है

मिट्टी ने पी लिया है हरारत भरा लहू
जोश-ए-नुमू मिला तो बदन क़ाश क़ाश है

काँटों ने भी ख़िज़ाँ की ग़ुलामी क़ुबूल की
देखो तो आज चेहरा-ए-गुल पुर-ख़राश है

वो दौर अब कहाँ कि तुम्हारी हो जुस्तुजू
इस दौर में तो हम को ख़ुद अपनी तलाश है

'अफ़ज़ल' वो बन सँवर के तो आ जाएँगे कभी
आईना-ए-हयात मगर पाश पाश है