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जो शजर बे-लिबास रहते हैं | शाही शायरी
jo shajar be-libas rahte hain

ग़ज़ल

जो शजर बे-लिबास रहते हैं

ताहिर फ़राज़

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जो शजर बे-लिबास रहते हैं
उन के साए उदास रहते हैं

चंद लम्हात की ख़ुशी के लिए
लोग बरसों उदास रहते हैं

इत्तिफ़ाक़न जो हँस लिए थे कभी
इंतिक़ामन उदास रहते हैं

मेरी पलकें हैं और अश्क तिरे
पेड़ दरिया के पास रहते हैं

उन के बारे में सोचिए 'ताहिर'
जो मुसलसल उदास रहते हैं