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जो शाना गेसू-ए-जानाँ में हम कभू करते | शाही शायरी
jo shana gesu-e-jaanan mein hum kabhu karte

ग़ज़ल

जो शाना गेसू-ए-जानाँ में हम कभू करते

शऊर बलगिरामी

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जो शाना गेसू-ए-जानाँ में हम कभू करते
तिरी भी ऐ दिल-ए-गुम-गश्ता जुस्तुजू करते

हमारे दिल पे ये आफ़त न आती इक सर-ए-मू
पसंद हम जो न वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू करते

सियाह-बख़्त-ए-अज़ल हूँ कहाँ हैं ऐसे नसीब
कि क़त्ल कर के मुझे आप सुर्ख़-रू करते

ये आरज़ू रही दिल में हमारे ता-दम-ए-नज़अ
जो आता यार तो कुछ उस से गुफ़्तुगू करते