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जो सहीफ़ों में लिखी है वो क़यामत हो जाए | शाही शायरी
jo sahifon mein likhi hai wo qayamat ho jae

ग़ज़ल

जो सहीफ़ों में लिखी है वो क़यामत हो जाए

रेहाना रूही

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जो सहीफ़ों में लिखी है वो क़यामत हो जाए
गर मोहब्बत दिल-ए-इंसाँ से भी रुख़्सत हो जाए

तू ज़मीनों पे उतर कर जो गुज़ारे इक दिन
आसमानों के ख़ुदा तुझ को भी हैरत हो जाए

कहीं ऐसा न हो कि तन्हा यूँही रहते रहते
रफ़्ता रफ़्ता मुझे तन्हाई की आदत हो जाए

कुछ बशर ऐसे भी होते हैं कि जिन से मिल कर
देवताओं की तरह उन से अक़ीदत हो जाए

बद-दुआ उस ने मुझे दी है कि 'रूही' तुझ को
अपने जैसे किसी ज़ालिम से मोहब्बत हो जाए