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जो रिवायात भूल जाते हैं | शाही शायरी
jo riwayat bhul jate hain

ग़ज़ल

जो रिवायात भूल जाते हैं

रिफ़अत सुलतान

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जो रिवायात भूल जाते हैं
अपनी हर बात भूल जाते हैं

अहल-ए-दिल अहल-ए-दर्द अहल-ए-करम
दे के ख़ैरात भूल जाते हैं

आप आएँ तो फ़र्त-ए-शौक़ से हम
दिन है या रात भूल जाते हैं

अपनी मिट्टी के घर बना कर भी
लोग बरसात भूल जाते हैं

गुल्सिताँ में ख़िज़ाँ भी आएगी
फूल और पात भूल जाते हैं

याद रखते हैं आप सब बातें
लेकिन इक बात भूल जाते हैं

जब भी वो ख़ुश-नज़र मिले 'रिफ़अत'
ग़म के लम्हात भूल जाते हैं