जो पूछते हैं कि ये इश्क़-ओ-आशिक़ी क्या है
वो जानते नहीं मक़्सूद-ए-ज़िंदगी क्या है
ज़मीर-ए-पाक ख़याल-ए-बुलंद ज़ौक़-ए-लतीफ़
बस और इस के सिवा जौहर-ए-ख़ुदी क्या है
वफ़ा की आड़ में क्या क्या हुई जफ़ा हम पर
जो दोस्ती यही ठहरी तो दुश्मनी क्या है
बजा है फ़र्त-ए-जुनूँ ने हमें किया रुस्वा
जमाल-ए-यार में आख़िर ये दिलकशी क्या है
वुफ़ूर-ए-शौक़ की मायूसियाँ अरे तौबा
दिल-ए-तबाह में अब आरज़ू रही क्या है
अगर न जुर्म-ए-मोहब्बत की ये सज़ा होती
तो बात बात पे हम से ये बे-रुख़ी क्या है
न समझो तुम मिरी अर्ज़-ए-नियाज़ को शिकवा
मैं जानता हूँ तक़ाज़ा-ए-बंदगी क्या है
अता किया था जो ज़ौक़-ए-नुमूद उस दिल को
तो हर क़दम पे ये रंग-ए-शिकस्तगी क्या है
गुरेज़ क्या मैं करूँ नासेहो की सोहबत से
जहाँ न कुछ हो ये सोहबत वहाँ बुरी क्या है
वफ़ा से और न तर्क-ए-वफ़ा से आप हैं ख़ुश
मुझे बताइए फिर आप की ख़ुशी क्या है
फ़रेब-ए-हस्ती-ए-मौहूम खा रहा हूँ हनूज़
मुझे ख़बर है हक़ीक़त यहाँ मिरी क्या है
जो गामज़न हैं सर-ए-जादा-ए-तलब 'नजमी'
वो जानते नहीं दुनिया में बेबसी क्या है
ग़ज़ल
जो पूछते हैं कि ये इश्क़-ओ-आशिक़ी क्या है
अमजद नजमी