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जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे | शाही शायरी
jo puchha munh dikhane aap kab chilman se niklenge

ग़ज़ल

जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे

मुज़्तर ख़ैराबादी

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जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
तो बोले आप जिस दिन हश्र में मदफ़न से निकलेंगे

जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
धुआँ बन बन के अरमाँ महफ़िल-ए-दुश्मन से निकलेंगे

इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा
वो सब जल्वे जो छन छन कर तिरी चिलमन से निकलेंगे

सियह पोशाक दोश-ए-नाज़ पर बिखरी हुई ज़ुल्फ़ें
मिरे मातम की शिरकत को बड़े जोबन से निकलेंगे

हमें पर्वा नहीं इस की क़यामत लाख बार आए
न तुम मदफ़न पे आओगे न हम मदफ़न से निकलेंगे

तिरे दामन से बदला लेंगे ज़ालिम ख़ून-ए-नाहक़ का
वो फ़व्वारे लहू के जो मिरी गर्दन से निकलेंगे

यही रिश्ता जुनून-ए-आशिक़ी का है तो कुछ दिन में
मिरे तार-ए-गरेबाँ यार के दामन से निकलेंगे

हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़्न हैं 'मुज़्तर'
क़यामत होगी जब ये सब के सब मदफ़न से निकलेंगे