जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
तो बोले आप जिस दिन हश्र में मदफ़न से निकलेंगे
जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
धुआँ बन बन के अरमाँ महफ़िल-ए-दुश्मन से निकलेंगे
इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा
वो सब जल्वे जो छन छन कर तिरी चिलमन से निकलेंगे
सियह पोशाक दोश-ए-नाज़ पर बिखरी हुई ज़ुल्फ़ें
मिरे मातम की शिरकत को बड़े जोबन से निकलेंगे
हमें पर्वा नहीं इस की क़यामत लाख बार आए
न तुम मदफ़न पे आओगे न हम मदफ़न से निकलेंगे
तिरे दामन से बदला लेंगे ज़ालिम ख़ून-ए-नाहक़ का
वो फ़व्वारे लहू के जो मिरी गर्दन से निकलेंगे
यही रिश्ता जुनून-ए-आशिक़ी का है तो कुछ दिन में
मिरे तार-ए-गरेबाँ यार के दामन से निकलेंगे
हज़ारों हुस्न वाले इस ज़मीं में दफ़्न हैं 'मुज़्तर'
क़यामत होगी जब ये सब के सब मदफ़न से निकलेंगे
ग़ज़ल
जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे
मुज़्तर ख़ैराबादी