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जो पाँच वक़्त मुसल्ले पे क़िबला-रू निकले | शाही शायरी
jo panch waqt musalle pe qibla-ru nikle

ग़ज़ल

जो पाँच वक़्त मुसल्ले पे क़िबला-रू निकले

मुबारक अज़ीमाबादी

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जो पाँच वक़्त मुसल्ले पे क़िबला-रू निकले
उन्हीं बुज़ुर्गों के ज़ेर-ए-बग़ल सुबू निकले

बड़ा मज़ा हो बुत-ए-कम-सुख़न जो महशर में
ख़ुदा के सामने हाज़िर-जवाब तू निकले

वो गो सुना किए लेकिन अदा ये कहती रही
न ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मेरे रू-ब-रू निकले

किसी को दैर किसी को हरम मुबारक हो
हमें वो दर कि जहाँ दिल की आरज़ू निकले