जो नज़र आता नहीं दीवार में दर और है
इन सितम-गारों के पीछे इक सितमगर और है
जो नज़र आता नहीं रस्ते का पत्थर और है
मैं नहीं हूँ मेरे अंदर एक ख़ुद-सर और है
इन फ़ज़ाओं में मगर मेरा गुज़र मुमकिन नहीं
मेरी मंज़िल और है मेरा मुक़द्दर और है
हम हैं तूफ़ान-ए-हवादिस में हमें मालूम है
तुम समझ सकते नहीं साहिल का मंज़र और है
बोझ तेरी बेवफ़ाई का उठा लेता मगर
इक तमन्ना तुझ से बढ़ कर दिल के अंदर और है
कुछ तअ'ल्लुक़ ही नहीं जिस का मिरे हालात से
मेरे मोहसिन तेरा इक एहसान मुझ पर और है
आप से मिल कर मुझे महसूस ये होने लगा
ये मिरा पैकर नहीं है मेरा पैकर और है
मेरी बर्बादी का बाइ'स सिर्फ़ नादारी नहीं
एक सामान-ए-अज़िय्यत इस से बढ़ कर और है
रौशनी पहले भी होती थी मगर 'सुल्तान-रश्क'
आफ़्ताब-ए-सुबह-ए-आज़ादी का मंज़र और है
ग़ज़ल
जो नज़र आता नहीं दीवार में दर और है
सुलतान रशक