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जो नाम सब से हो प्यारा उसे मकान पे लिख | शाही शायरी
jo nam sab se ho pyara use makan pe likh

ग़ज़ल

जो नाम सब से हो प्यारा उसे मकान पे लिख

करामत अली करामत

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जो नाम सब से हो प्यारा उसे मकान पे लिख
बदन की हद से गुज़र और इस को जान पे लिख

बजा है करते हैं पानी पे दस्तख़त सब लोग
जो हौसला है तो नाम अपना आसमान पे लिख

तू लिखने बैठा है मेरे ख़ुलूस का क़िस्सा
यक़ीन पर नहीं लिखता न लिख गुमान पे लिख

सहीफ़ा-ए-दिल-ए-बेताब की नई तफ़्सीर
क़लम उठा और उसे वक़्त की ज़बान पे लिख

सफ़र मुदाम सफ़र ही तो है सफ़र का सिला
तू अपना क़िस्सा-ए-ला-समतियत उड़ान पे लिख

सँवार शाना-ए-फ़न से तू ज़ुल्फ़-ए-क़ौस-ए-क़ुज़ह
तू ज़िंदगी के ख़म-ओ-पेच फिर कमान पे लिख

जो ''क़ुल'' मसूर पे लिखते हैं उन का फ़न है जुदा
तू ख़ून-ए-दिल से कोई शेर मर्तबान पे लिख

हर एक चीज़ यहाँ प्रेम ही से मिलती है
ये इश्तिहार 'करामत' तू हर दुकान पे लिख