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जो न मिल बैठा हो फिर उस से शिकायत कैसी | शाही शायरी
jo na mil baiTha ho phir us se shikayat kaisi

ग़ज़ल

जो न मिल बैठा हो फिर उस से शिकायत कैसी

जावेद मंज़र

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जो न मिल बैठा हो फिर उस से शिकायत कैसी
मैं अकेला ही चला हूँ तो रिफ़ाक़त कैसी

ख़ुद तो आएँगे नहीं और बुलाएँगे हमें
देखिए आप ने डाली ये रिवायत कैसी

मैं ने चाहा तो बहुत टूट के चाहा न गया
यूँ भी टूटी है कई बार क़यामत कैसी

तुम ने जीने का मुझे हौसला बख़्शा है तो फिर
मुझ से रहते हो गुरेज़ाँ ये सियासत कैसी

जब बिछड़ना ही मोहब्बत का तक़ाज़ा ठहरा
फिर निगाहों में मिरी जाँ ये नदामत कैसी