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जो न करना था किया जो कुछ न होना था हुआ | शाही शायरी
jo na karna tha kiya jo kuchh na hona tha hua

ग़ज़ल

जो न करना था किया जो कुछ न होना था हुआ

बिस्मिल इलाहाबादी

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जो न करना था किया जो कुछ न होना था हुआ
चार दिन की ज़िंदगी में क्या कहें क्या क्या हुआ

ये समझ कर हम नहीं कहते किसी से राज़-ए-दिल
इस तरफ़ निकला ज़बाँ से उस तरफ़ चर्चा हुआ

भर के ठंडी साँस लीं बीमार ने जब करवटें
वो कलेजा थाम कर कहने लगे ये क्या हुआ

सुनिए सुनिए आतिश-ए-ग़म से हुए हम जल के ख़ाक
कहिए कहिए अब कलेजा आप का ठंडा हुआ

मेरे चेहरे से अयाँ है देख लो पहचान लो
ये न पूछो दिल का आलम दिल का नक़्शा क्या हुआ