EN اردو
जो न हो दर्द-आश्ना वो सरख़ुशी किस काम की | शाही शायरी
jo na ho dard-ashna wo sarKHushi kis kaam ki

ग़ज़ल

जो न हो दर्द-आश्ना वो सरख़ुशी किस काम की

सय्यद अमीन अशरफ़

;

जो न हो दर्द-आश्ना वो सरख़ुशी किस काम की
शाइ'री तमसील या सूरत-गरी किस काम की

ग़म जो औरों का हो अपना ग़म समझ कर लीजिए
वर्ना दिल का सोज़ आँखों की नमी किस काम की

एक जैसे हों अगर संग-ओ-समर क्या देखना
सेहन-ए-यख़-बसता में कोई रौशनी किस काम की

ख़ाक-दान-ए-तीरा में इक आलम-ए-रौशन भी है
बे-जुनूँ भी ये मुनव्वर आगही किस काम की

वो तो इक सैलाब था सब कुछ बहा कर ले गया
नाम की तख़्ती सर-ए-दीवार थी किस काम की

रंज हर्फ़-ए-ना-शुनीदा आसमाँ ना-आश्ना
ऐ हवा-ए-दर्द आशुफ़्ता-सरी किस काम की

इर्तिबात-ए-चश्म-ओ-लब का भी कोई सामाँ तो हो
वर्ना उस ख़ाल-ए-सियह की दिलकशी किस काम की