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जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है | शाही शायरी
jo mil gaya hai yahan jalwa-e-KHayali hai

ग़ज़ल

जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है

ताजदार आदिल

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जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है
ये बात हम ने मोहब्बत में आज़मा ली है

अजीब सल्तनत-ए-इश्क़ में निज़ाम मिला
जो बादशाह नज़र आता है इक सवाली है

तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन
ये एक शम्अ अँधेरे ने ख़ुद जला ली है

हुनर की आग जलाई है ख़ाक से उस ने
कमाल उस का ही है मेरी बे-कमाली है

सदा ये सोचता हूँ उस का फ़ैज़ क्या लिक्खूँ
कि मेरा दोस्त भी और आदमी मिसाली है

कभी दिया भी है लम्हा किसी को चाहत का
तो ज़िंदगी ने ये फ़ुर्सत कभी चुरा ली है

किराया-दारी वसीला है अपने जीने का
तुम आना चाहो तो दिल का मकान ख़ाली है

कभी तो झाँको ज़रा इस की आग के पीछे
ये आदमी कि जो ज़ाहिर में ला-उबाली है