जो मेरी छत का रस्ता चाँद ने देखा नहीं होता
तो शायद चाँदनी ले कर यहाँ उतरा नहीं होता
दुआएँ दो तुम्हें मशहूर हम ने कर दिया वर्ना
नज़र-अंदाज़ कर देते तो ये जल्वा नहीं होता
अभी तो और भी मौसम पड़े है मेरे साए में
मैं बरगद का शजर हूँ मुद्दतों बूढ़ा नहीं होता
हसीनों से तमन्ना-ए-वफ़ा कम-ज़र्फ़ रखते हैं
ये ऐसा ख़्वाब है जो उम्र-भर पूरा नहीं होता
बड़े एहसान हैं मुझ पर तिरी मा'सूम यादों के
मैं तन्हा रास्तो में भी कभी तन्हा नहीं होता
मैं जब जब शेर की गहराइयों में डूब जाता हूँ
सिवा तेरे मिरे दिल में कोई चेहरा नहीं होता
ग़ज़ल
जो मेरी छत का रस्ता चाँद ने देखा नहीं होता
चित्रांश खरे