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जो मेरे दिल में फ़रोज़ाँ है शाइरी की तरह | शाही शायरी
jo mere dil mein farozan hai shairi ki tarah

ग़ज़ल

जो मेरे दिल में फ़रोज़ाँ है शाइरी की तरह

निसार नासिक

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जो मेरे दिल में फ़रोज़ाँ है शाइरी की तरह
मैं उस को ढूँढता फिरता हूँ नौकरी की तरह

जो मेरी ज़ात का इज़हार है वो लफ़्ज़ अभी
मिरे लबों पे सिसकता है ख़ामुशी की तरह

हवा का साथ न दे इस नगर बरस के गुज़र
मैं बे-हयात हूँ सूखी हुई नदी की तरह

तो ला-ज़वाल है बे-मानवीयतों की मिसाल
मैं बे-सबात हूँ माँगी हुई हँसी की तरह

न कोई याद मिली है न कोई ज़ख़्म भरा
'निसार' उम्र कटी है मुसाफ़िरी की तरह