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जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना | शाही शायरी
jo mere bas mein hai us se ziyaada kya karna

ग़ज़ल

जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना

ज़ीशान साहिल

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जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना
सफ़र तो करना है उस का इरादा क्या करना

बस एक रंग है दिल में किसी के होने से
अब अपने-आप को इस से भी सादा क्या करना

जब अपनी आग ही काफ़ी है मेरे जीने को
तो महर ओ माह से भी इस्तिफ़ादा क्या करना

तिरे लबों के सिवा कुछ नहीं मयस्सर जब
सो फ़िक्र-ए-साग़र-ओ-साक़ी-ओ-बादा क्या करना

तमाम कश्तियाँ साहिल पे हैं अभी ठहरी
अभी से इन को जलाने का वादा क्या करना