EN اردو
जो मैं ने कह दिया उस से मुकरने वाला नहीं | शाही शायरी
jo maine kah diya us se mukarne wala nahin

ग़ज़ल

जो मैं ने कह दिया उस से मुकरने वाला नहीं

ऐनुद्दीन आज़िम

;

जो मैं ने कह दिया उस से मुकरने वाला नहीं
कि आसमान ज़मीं पर उतरने वाला नहीं

मैं रेज़ा रेज़ा हूँ लेकिन नमी अभी तक है
हवाएँ लाख चलें मैं बिखरने वाला नहीं

मैं जानता हूँ वो अच्छे दिनों का साथी है
बुरे दिनों में इधर से गुज़रने वाला नहीं

हमारे शहर में चेहरा नहीं रहा शायद
पड़े हैं आइना-ख़ाने सँवरने वाला नहीं

तिरे करम का सज़ा-वार मैं हूँ या दिल है
दिया है तू ने वो कासा जो भरने वाला नहीं

कहाँ का ख़्वाब मुसाफ़िर की आँख में 'आज़िम'
कि बहते पानी में मंज़र ठहरने वाला नहीं