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जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब | शाही शायरी
jo kuchh hai husn mein har mah-laqa ko aish-o-tarab

ग़ज़ल

जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब

नज़ीर अकबराबादी

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जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब
वही है इश्क़ में हर मुब्तला को ऐश-ओ-तरब

अगरचे अह्ल-ए-नवा ख़ुश हैं हर तरह लेकिन
ज़ियादा उन से है हर बे-नवा को ऐश-ओ-तरब

वो मय-कदे में हलावत है रिंद-ए-मय-कश को
जो ख़ानक़ाह में है पारसा को ऐश-ओ-तरब

रखे है हर तन-ए-उर्यां बरहना-पाई वही
जो कुछ है साहिब-ए-अस्प-ओ-क़बा को ऐश-ओ-तरब

कमाल-ए-क़ुदरत-ए-हक़ है 'नज़ीर' क्या कहिए
जो शाह को है वही है गदा को ऐश-ओ-तरब