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जो कोई दर पे तिरे बैठे हैं | शाही शायरी
jo koi dar pe tere baiThe hain

ग़ज़ल

जो कोई दर पे तिरे बैठे हैं

क़ाएम चाँदपुरी

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जो कोई दर पे तिरे बैठे हैं
दोनों आलम से फिरे बैठे हैं

जूँ नम-ए-अश्क तू किस से है ख़फ़ा
याँ कोई पल में गिरे बैठे हैं

दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
हर तरफ़ लोग घिरे बैठे हैं

कोई आया ही न भूला हम तो
कब से रस्ते के सिरे बैठे हैं

गर्म कर दे तू टुक आग़ोश में आ
मारे जाड़े के ठिरे बैठे हैं

क़ुल्ज़ुम-ए-इश्क़ का उल्टा है तरीक़
याँ जो डूबे सो तिरे बैठे हैं

किस को दूँ दोश तिरी मज्लिस में
अपने मुशफ़िक़ ही निरे बैठे हैं

हम तो 'क़ाएम' न ठहरते यक-दम
लेक याँ दिल के घिरे बैठे हैं