जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे
फूलों में गुज़रती है जिन की काँटों की चुभन क्या समझेंगे
पत्थर के पुजारी आँखों की गहराई को पाना क्या जानें
क़िस्मत पे यक़ीं रखने वाले माथे की शिकन क्या समझेंगे
हम दीवाने हैं दीवाने बेकार सबक़ देते हो हमें
हम मौत के मअनी किया जानें हम दार-ओ-रसन क्या समझेंगे
क्या दुख है हमें क्या ग़म है हमें क्यूँ जाएँ किसी से कहने को
कलियों की जौ इज़्ज़त कर न सके वो दर्द-ए-चमन क्या समझेंगे
क्यूँ नाहक़ ले कर बैठ गए ग़म-हा-ए-मुसलसल का क़िस्सा
वो दर्द की क़ीमत क्या जानें वो दिल की जलन क्या समझेंगे
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ग़ज़ल
जो ख़ुम पर ख़ुम छलकाते हैं होंटों की थकन क्या समझेंगे
मुश्ताक़ नक़वी