जो ख़ुद उदास हो वो क्या ख़ुशी लुटाएगा
बुझे दिये से दिया किस तरह जलाएगा
कमान ख़ुश है कि तीर उस का कामयाब रहा
मलाल भी है कि अब लौट के न आएगा
वो बंद कमरे के गमले का फूल है यारो
वो मौसमों का भला हाल क्या बताएगा
मैं जानता हूँ तिरे बा'द मेरी आँखों में
बहुत दिनों तिरा एहसास झिलमिलाएगा
तुम उस को अपना समझ तो रहे हो 'नाज़' मगर
भरम भरम है किसी रोज़ टूट जाएगा

ग़ज़ल
जो ख़ुद उदास हो वो क्या ख़ुशी लुटाएगा
कृष्ण कुमार नाज़