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जो करते थे उल्टा-सीधा करते थे | शाही शायरी
jo karte the ulTa-sidha karte the

ग़ज़ल

जो करते थे उल्टा-सीधा करते थे

निवेश साहू

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जो करते थे उल्टा-सीधा करते थे
हम पत्थर पे दरिया फेंका करते थे

इस जंगल के पेड़ों से मैं वाक़िफ़ हूँ
गिर जाते थे जिस पर साया करते थे

मैं बस्ती में तितली पकड़ा करता था
बाक़ी सारे लोग तो झगड़ा करते थे

कुछ बच्चे सैलाबों में बह जाते हैं
हम पलकों से दरिया रोका करते थे

जाओ कोई तार-वारा नहीं गिरता
हम ही छत से जुगनू फेंका करते थे

सब रूहें ज़ेहनों पर कपड़ा रखती थीं
हम बस जिस्मों का ही पर्दा करते थे

रोज़ मुशाहिद रहते थे हम शाम तलक
फिर सूरज का माथा चूमा करते थे

मैं उस आग में जिस्म जला कर आया था
जिस में सारे आँखें सेका करते थे