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जो कल न था वो आज है ऐ हम-शबीह-ए-मन | शाही शायरी
jo kal na tha wo aaj hai ai ham-shabih-e-man

ग़ज़ल

जो कल न था वो आज है ऐ हम-शबीह-ए-मन

मिद्हत-उल-अख़्तर

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जो कल न था वो आज है ऐ हम-शबीह-ए-मन
अब इस का क्या इलाज है ऐ हम-शबीह-ए-मन

आँखों में अश्क लब पे हँसी तिस पे बे-हिसी
ये कैसा इम्तिज़ाज है ऐ हम-शबीह-ए-मन

हँस के मिलो हर एक से जिस हाल में मिलो
इस शहर का रिवाज है ऐ हम-शबीह-ए-मन

देखा है कोई ख़्वाब अज़ीज़ान-ए-शहर ने
कै साल का अनाज है ऐ हम-शबीह-ए-मन

सब लोग मुतमइन हैं कोई बे-कली नहीं
ये कौन सा समाज है ऐ हम-शबीह-ए-मन

मैं ने कहा न था कि यहाँ क़द्र-ए-दिल नहीं
क्यूँ इस पे बद-मिज़ाज है ऐ हम-शबीह-ए-मन