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जो कैफ़-ए-इश्क़ से ख़ाली हो ज़िंदगी किया है | शाही शायरी
jo kaif-e-ishq se Khaali ho zindagi kiya hai

ग़ज़ल

जो कैफ़-ए-इश्क़ से ख़ाली हो ज़िंदगी किया है

शायर फतहपुरी

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जो कैफ़-ए-इश्क़ से ख़ाली हो ज़िंदगी किया है
शगुफ़्तगी न मिले जिस में वो कली क्या है

मिरी निगाह में है उन का आरिज़-ए-रौशन
ये कहकशाँ ये सितारे ये चाँदनी क्या है

जमाल-ए-यार की रानाइयों में गुम है नज़र
मुझे ये होश कहाँ है कि ज़िंदगी क्या है

उठा भी जाम कि दुनिया तिरे क़दम चूमे
ये मय-कदा है यहाँ ऐश की कमी क्या है

तुम्हारी याद में बैठे हैं दिल को बहलाने
सनम-तराशी-ओ-ज़ौक़-ए-मुसव्विरी क्या है

नफ़स नफ़स पे ये एहसास-ए-ग़म ये मजबूरी
ख़ुदा-गवाह क़यामत है ज़िंदगी क्या है

निगाह-ए-शौक़ के उठने की देर है 'शाइर'
वो बे-क़रार न आए तो बात ही क्या है