जो कहते हो चलें हम भी तिरे हमराह बिस्मिल्लाह
फिर इस में देर क्या और पूछना क्या वाह बिस्मिल्लाह
क़दम इस नाज़ से रखता हुआ आता है महफ़िल में
कि अहल-ए-बज़्म सब कहते हैं बिस्मिल्लाह बिस्मिल्लाह
लगाई उस ने जो जो तेग़ अबरू की मिरे दिल पर
लब-ए-हर-ज़ख़्म से निकली बजाए आह बिस्मिल्लाह
शब-ए-मह में जो कल टुक डगमगाया वो तो सब अंजुम
वहीं बोले ख़ुदा-हाफ़िज़ पुकारा माह बिस्मिल्लाह
वो जिस दम नुस्ख़ा-ए-नाज़-ओ-अदा आग़ाज़ करता है
तो हम कहते हैं इक इक आन पर वल्लाह बिस्मिल्लाह
जो उस की चाह का जी में इरादा है तो बस ऐ दिल
मुबारक है तुझे जा शौक़ से तू चाह बिस्मिल्लाह
'नज़ीर' उस दिलरुबा महबूब चंचल से लगा कर दिल
हमें कहना पड़ा है दम-ब-दम अल्लाह बिस्मिल्लाह
ग़ज़ल
जो कहते हो चलें हम भी तिरे हमराह बिस्मिल्लाह
नज़ीर अकबराबादी