जो जल उठी है शबिस्ताँ में याद सी क्या है
ये झिलमिलाहटें क्या हैं ये रौशनी क्या है
किसी से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ के बा'द भी मिलना
बुरा ज़रूर है लेकिन कभी कभी क्या है
अब अपने हाल पे हम ध्यान ही नहीं देते
न जाने बे-ख़बरी है कि आगही क्या है
यही सवाल नहीं है फ़क़त कि हम क्या हैं
ये काएनात है क्या और ज़िंदगी क्या है
हँसी जो देख रहे हो हमारे होंटों पर
ज़बान-ए-हाल से इक चीख़ है हँसी क्या है
'शुऊर' अभी से ये ख़ुश-फ़हमियाँ ये उम्मीदें
अभी तो सिर्फ़ मुलाक़ात है अभी क्या है
ग़ज़ल
जो जल उठी है शबिस्ताँ में याद सी क्या है
अनवर शऊर